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Friday, February 19, 2010

मासूम सी तेरी याद













झिलमील-2 तारो से
जगमग है एक रात
इन रातों में आ जाती है,
अचानक
मासूम सी तेरी याद !!
बीतें लम्हों से
धुन्धली सी
जैसे पडी तस्विर
कभी गिरती, कभी उठती
सर्द हवाओं के स्पश्र जैसी
मासूम सी तेरी याद !!
कभी जाडे की धुप सी गुनगुनी
जैसे तुम्हारे स्पर्श से
महकती ,सिसकती, शर्मायी
नवेली दुलहन के जैसे
छलक जाती है
मासूम सी तेरी याद !!
नश्वर है यह वक़्त
सहशा पीछे मुडकर
नही जाया जा सकता
यह हमने भि जाना है,
फिर भि बहुत व्याकुल है मन
आकुलाता है यह छण
और
इनके सब के बीच
अचानक
मासूम सी तेरी याद !!
अब तो बस,
तेरे बीन रहना है
अकेले- अकेले ही
सफर तय करना है
अब मेरा है
यह एकाकी जीवन
और
इनमें बसी
मासूम सी तेरी याद !!
© सर्वाधिकार सुरक्षित-राणा नवीन 

4 comments:

Unknown said...

nice one

Unknown said...

bahut achi hai,i like it my heart

Unknown said...

bade massom dil ki massom jajbat.......

kaju said...

nice poem