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Wednesday, November 17, 2010

भीगी हुई शाम

यह भीगी हुई  शाम ,
और  तेरे शहर का  भटकता बादल
किस  सोच  में  खो  गयी  दिल  की  दुनिया ,
आने लगी याद  तेरी ,
और  ना  जाने
क्या - क्या  याद  आने  लगा
बीता  हुआ ,
इस  भटकते  बादल ने 
भींगें  मौसम  में
दर्द  की   आग  फैलाने  लगा  !

//राणा //

2 comments:

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

सुन्दर!

खासकर ये पंक्ति :
भींगें मौसम में
दर्द की आग फैलाने लगा !

एक कविता अर्थहीन ,श्याम – शवेत तथा मौन । said...

धन्यवाद पंकज जी ... आभार