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Thursday, February 25, 2010

यूँ तुम आया ना करो

यूँ तुम आया ना करो
हमको सताया ना करो
यूँ दिल को जलाया ना करो
कहना जो चाहे अपनी
तुम अपनी सुनाया ना करो !!
सफर मे साथ तो दोगी हमसफर मेरी
बीच रह्गुजर मे हाथ छुडाया ना करो,
करती हो तुम भी मोहब्बत मुझसे से
भीड मे यूँ बताया ना करो
रखो शर्म का पर्दा हमेशा,मुझसे
यूँ चेहरे से घूँघट हटाया न करो !!
कुछ मजबुरीया मेरी भी, कुछ तेरी भी
किस्मत का दोस बताया ना करो !
करना जो चाहो शिकवा हम से
लव अपने हीलाया ना करो !
आँखो ही आँखो मे इजहार कर दो
भडी महफील मे चिख के बताया ना करो !
रखना हमेशा हम पे यकी,
हरबार हमको यूँ आजमाया न करो !
दिखा देगा जान देकर राणा
 यूँ मुझको बेवफा बताया ना करो !
© सर्वाधिकार सुरक्षित-राणा नवीन  

Monday, February 22, 2010

मन

कवि मन है मेरा
कविताये हमेशा रचता है
शब्दों के ताने बाने से
एक जाल सा बुनता है !
तुमको पाने की आस लगाये
गुमसुम- गुमसुम रहता है ।।

शब्द हुये मूक कुछ ऐसे
दिन में सूरज पिघलता है। 
कभी खुशी में तो कभी गम में
नयनों से सावन बरसता है ।।
कवि मन है मेरा
कविताये हमेशा रचता है ।। 

दो प्रेमी के मिलने को

आलिंगन में बंधने को
अधरो से अधर मिलना है
एक नया उपवन खिलना है
मन जीवन संजोता है
कवि मन है मेरा
कविताये हमेशा रचता है!

 कवि मन है मेरा
कविताये हमेशा रचता है
शब्दों के ताने बाने से
एक जाल सा बुनता है !
तुमको पाने की आस लगाये
गुमसुम- गुमसुम रहता है ।।

© सर्वाधिकार सुरक्षित -राणा नवीन 

Saturday, February 20, 2010

हम












मुझे ठीक़ –ठीक़ याद नही
मै तुमसे कब मिला था
वह हमारा प्रथम मिलन
जिसमे मै और तुम
दोनो मिलकर
हो गये थे हम!!

कहना कठिन है
वह पहले प्रेम का एह्साश
नामुमकिन तो नही
कठिन जरूर है, याद करना
कितने साल हो गये
हम बने हुये !( मै और तुम मिलकर )

हा, मगर यह याद है
कुछ ही दिन गुजरे है
हम फिर से
बन गये है मै और तुम !!
मै भी उदास नही
तुम भी उदास मत होना
बस प्रतीक्ष।  करना, विश्वास रखना
एक सच्चे प्यार के मौसम का
मै और तुम,
से हम होने तक !!

सच्चे प्यार पर चलते हुये
परीक्ष और प्रतीक्ष
कभी न मिल पाने की घबराहट
और वियोग से
दिखता है एक अलग रास्ता
इस पर चलते हुय
कही न कही
सचमुच ही
मै और तुम
मिलकर हो जायेगे हम !!
 © सर्वाधिकार सुरक्षित-राणा नवीन 

माँ

माँ एक विश्वास है
माँ एक एह्सास है
जीवन को उज्ज्वल कर दें
माँ वह लौ है
माँ वह प्रकाश है! 
© सर्वाधिकार सुरक्षित-राणा नवीन 

Friday, February 19, 2010

मासूम सी तेरी याद













झिलमील-2 तारो से
जगमग है एक रात
इन रातों में आ जाती है,
अचानक
मासूम सी तेरी याद !!
बीतें लम्हों से
धुन्धली सी
जैसे पडी तस्विर
कभी गिरती, कभी उठती
सर्द हवाओं के स्पश्र जैसी
मासूम सी तेरी याद !!
कभी जाडे की धुप सी गुनगुनी
जैसे तुम्हारे स्पर्श से
महकती ,सिसकती, शर्मायी
नवेली दुलहन के जैसे
छलक जाती है
मासूम सी तेरी याद !!
नश्वर है यह वक़्त
सहशा पीछे मुडकर
नही जाया जा सकता
यह हमने भि जाना है,
फिर भि बहुत व्याकुल है मन
आकुलाता है यह छण
और
इनके सब के बीच
अचानक
मासूम सी तेरी याद !!
अब तो बस,
तेरे बीन रहना है
अकेले- अकेले ही
सफर तय करना है
अब मेरा है
यह एकाकी जीवन
और
इनमें बसी
मासूम सी तेरी याद !!
© सर्वाधिकार सुरक्षित-राणा नवीन 

अंतर

अंतर

अक्सर सोचता हूँ
पहले से दूसरे प्यार
के बीच के अंतर को !
क्या कुछ है,
पहले प्यार जैसा !
नही शायद,
दूसरा प्यार पूरक है
पहले प्यार का !
या, छल है पहले प्यार से
या, कृतग्यता है,
पहले प्यार के खोने पर,
सहारा देने का !!
© राणा नवीन