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Sunday, March 7, 2010

गर्भपात

मेरी कुंआरी अपेक्षाओं का
जब तेरे अस्तित्व से 
समागम हुआ था, तो 
एक विचित्र सी
हलचल - एक सिहरन 
दौड गयी
मेरे समस्त शरीर में
धीरे-धीरे यह सिहरन 
एक रूप धारण करने लगी !
मगर -अचानक
तुम्हारा अस्तित्व छूट गया
मेरे हाथों में से रेत की तरह !
मेरे गर्भ मे पलने वाली
आकांक्षा , अचानक 
एक पाप का रूप 
धारण कर गई
किसी पिता के अभाव में ! 
कुछ दिन स्त्ब्ध रह कर 
उस आकांक्षा से मुक्ति पाने हेतु 
मैंने गर्भपात करवा लिया
और अब एक बार फिर 
'कुंआरी' बन गई हूँ,
किसी विधिवत समागम हेतु ! 
 

© सर्वाधिकार सुरक्षित -राजीव शर्मा( मेरे साथ कार्यरत ) 

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत गहन रचना...राजीव जी को बधाई..