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Friday, September 17, 2010

रिश्ते


सच को बयां करें वह आईना ना मिला
खुद जैसा मुझे कोई अजनबी ना मिला !

अजीब है ये रिश्तो की कश्मोकश की डोरी
तमाम उम्र साथ रहा और मुझसे कभी ना मिला !

अजनबी शहर हैं दिल्ली,यहाँ का आलम देखिये
लोगो ने हाथ मिला ली, पर दिल ना मिला !

इश बहार में यह बाग़ को देखो
हर पेड़ हरा है , कोई पत्ता हरा ना मिला !

 ये खुदा तेरे इश जहाँ में "राणा"
एक आरजू की और मुझे वह ना मिला !

© सर्वाधिकार सुरक्षित - राणा नवीन

2 comments:

एक कविता अर्थहीन ,श्याम – शवेत तथा मौन । said...

Writen on 17.09.2010

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

अच्छी पंक्तियाँ..
हर पेड़ हरा है कोई पत्ता हरा न दिखा ....वाह छू गए भाई